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Budget 2024: Let us decode budget of Sitaraman

budget 2024

फाइनेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण ने गुरुवार को फाइनेंशियल ईयर 2024-25 का अंतरिम बजट पेश किया। इनमें उन्होंने लोकलुभावन घोषणाओं से परहेज किया। माना जा रहा था कि चुनावी वर्ष में आ रहे इस बजट में सरकार लोगों के लिए रेवड़ियां बांट सकती हैं।

हाइलाइट्स

  • अंतरिम बजट में निर्मला सीतारमण ने नहीं किया कोई धमाका
  • रेवड़ियां नहीं बांटीं और राजकोषीय घाटे में कमी का वादा किया
  • फाइनेंस मिनिस्टर के अंतरिम बजट से अर्थशास्त्री झूम उठे हैं

Budget 2024

2024 लोकसभा चुनाव से पहले हालात बिल्कुल अलग हैं। BJP को आम चुनाव में जीत का भरोसा है। मोदी की अप्रूवल रेटिंग 90 प्रतिशत तक है। 

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पहले ही कह दिया था, माफ करना- अंतरिम बजट में कोई धमाका नहीं होगा, बस सरकार आमदनी-खर्च का हिसाब दे देगी। वह अपनी बात पर कायम रहीं। बजट में कोई फुलझड़ी नहीं थी लेकिन आप इसे उनकी आलोचना मत समझिए, यह तो उनकी प्रशंसा है। निर्मला के अंतरिम बजट से अर्थशास्त्री झूम उठे हैं। उन्होंने इसमें रेवड़ियां नहीं बांटीं और राजकोषीय घाटे में कमी का वादा किया।

आज भारत दुनिया के बड़े देशों में सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था है। पहले अग्रिम अनुमान में बताया गया कि वित्त वर्ष 2024 में देश की ग्रोथ 7.3 प्रतिशत रह सकती है, जो एक साल पहले 7.2 प्रतिशत थी। ऐसे वक्त में, जब दुनिया के कई देशों की अर्थव्यवस्था डूब रही हो, तब इतनी शानदार ग्रोथ की सराहना की जानी चाहिए। मसलन, भारत के पड़ोसी देशों- पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश को इधर IMF के पास मदद के लिए जाना पड़ा। यूं तो नेताओं की फेंकने की आदत होती है, लेकिन निर्मला के पास वाकई इसका अधिकार है।

Budget Deficit

राजकोषीय घाटे का मतलब है, सरकार की आमदनी से अधिक खर्च। निर्मला ने बताया कि वित्त वर्ष 2024 में यह घाटा GDP का 5.8 प्रतिशत रहा, जबकि पिछले बजट में इसके लिए 5.9 प्रतिशत का अनुमान रखा गया था। सरकार ऐसा इसलिए कर पाई क्योंकि उसे अच्छी आमदनी हुई। उन्होंने बताया कि वित्त वर्ष 2025 में यह 5.1 प्रतिशत रहेगा और उससे अगले साल 4.5 प्रतिशत। कोरोना महामारी, यूक्रेन युद्ध और अल निनो जैसी चुनौतियों के बीच यह बात खास मायने रखती है।

सवाल यह भी है कि राजकोषीय घाटे को लेकर अंतरिम बजट से जो अच्छी खबर आई, उसका शेयर बाजार पर पॉजिटिव असर क्यों नहीं पड़ा? 

कुछ आलोचक कह सकते हैं कि राजस्व घाटा तो वित्त वर्ष 2024 में GDP का 2.8 प्रतिशत रहा, जिसे कभी खत्म करने की बात कही गई थी और अगले वित्त वर्ष में भी यह 2 प्रतिशत रहने वाला है। कुछ अर्थशास्त्री यह भी कहेंगे कि सरकारी खजाने की सेहत तभी अच्छी मानी जाती है, जब प्राथमिक घाटा खत्म हो जाए। राजकोषीय घाटे में से सरकार की ब्याज देनदारी निकालने बाद जो रकम बचती है, उसे प्राथमिक घाटा कहते हैं। प्राथमिक घाटा शून्य हो तो उसका मतलब है कि सरकार जो भी उधार ले रही है, वह उससे निवेश करेगी। 

वित्त वर्ष 2024 में प्राथमिक घाटा 2.3 प्रतिशत रहा, लेकिन अगले साल इसके 1.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है। शायद यह आने वाले वर्षों में खत्म हो जाए।

असल में मार्केट टैक्स छूट की उम्मीद कर रहा था, जो पूरी नहीं हुई और बजट से पहले शेयर बाजार में यूं भी अच्छी तेजी आ चुकी थी। इसलिए गुरुवार को इसमें मामूली गिरावट आई और निफ्टी 50 इंडेक्स 0.13 प्रतिशत नीचे बंद हुआ।

कई जानकारों को लग रहा था कि वित्त मंत्री कुछ रेवड़ियों का ऐलान करेंगी। यूं तो अंतरिम बजट में ऐसा नहीं करना चाहिए, लेकिन पहले के कुछ वित्त मंत्रियों ने इस बंधन को नहीं माना था। 5 साल पहले पीयूष गोयल ने अंतरिम बजट पेश किया था और तब उन्होंने पर्सनल इनकम टैक्स से छूट की सीमा को बढ़ाकर 5 लाख रुपये कर दिया था। उन्होंने सैलरीड क्लास के लिए स्टैंडर्ड डिडक्शन में छूट के साथ अन्य रियायतें भी दी थीं। उन्होंने दावा किया था कि इससे मध्यवर्ग के 3 करोड़ करदाताओं को फायदा होगा, जो BJP का वोट बैंक माने जाते हैं।

चुनाव और बजट

गोयल के बजट से कुछ सप्ताह पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों को सालाना 6,000 रुपये देने की घोषणा की थी। इसे तेलंगाना की रायतू बंधु, ओडिशा की KALIA और राहुल गांधी की चुनाव जीतने पर हर किसान परिवार को 72,000 रुपये देने के वादे के मुकाबले में लाया गया था। रायतू बंधु योजना के तहत तेलंगाना में हर कटाई सीजन में किसानों को 4,000 रुपये प्रति एकड़ और KALIA के तहत ओडिशा के ग्रामीण इलाकों में रहने वालों को 10,000 रुपये का भुगतान किया जाता है। 2019 में BJP को भरोसा नहीं था कि वह आम चुनाव जीत जाएगी। दरअसल, कुछ महीने पहले मध्य भारत के तीन राज्यों में हुए चुनाव में वह हार गई थी। यूं तो मोदी अक्सर कहते हैं कि चुनाव रेवड़ियां बांटकर नहीं, परफॉरमेंस से जीते जाते हैं। इसके बावजूद BJP को तब रेवड़ियां बांटनी पड़ी थीं, भले ही दूसरी पार्टियों की तुलना में उसने कम फ्रीबीज दिए।

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