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भारत दुनिया का सबसे युवा देश, फिर भी बजट में जनसंख्या पर क्यों दिखाई सबसे बड़ी चिंता?

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एक खास समुदाय में तेजी से बढ़ती जनसंख्या और उसकी वजह से डेमोग्राफी में हो रहे बदलाव, खासकर सीमाई इलाकों में जनसांख्यिकी में बदलाव इस चिंता की बड़ी वजह है। संघ प्रमुख मोहन भागवत भी विजयादशमी पर दिए अपने भाषण में इस पर चिंता जाहिर कर चुके हैं।

संसद में अंतरिम बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने तेजी से बढ़ती आबादी और डेमोग्राफी में आए बदलाव की चुनौतियों से निपटने के लिए एक कमिटी बनाने का ऐलान किया। कमिटी के पास काफी अधिकार होंगे यानी उच्च अधिकार प्राप्त समिति होगी। उनका कहना है कि यह समिति ‘विकसित भारत’ बनाने के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए इन परेशानियों से निपटने के लिए सुझाव देगी। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, अप्रैल 2023 में ही चीन को पछाड़कर भारत दुनिया में सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश बन चुका है। हालांकि, 2011 के बाद देश में जनगणना नहीं हुई है। भारत दुनिया का सबसे युवा देश है। इसके बाद भी सरकार ने बजट में जनसंख्या पर क्यों चिंता दिखाई? 

तेजी से बढ़ती जनसंख्या और डेमोग्राफी में बदलाव पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी चिंता जताता आया है। तमाम तबकों की ओर से जनसंख्या नियंत्रण कानून की मांग होती आई है। पिछले साल अक्टूबर में दशहरा के मौके पर दिए गए अपने वार्षिक भाषण में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए सब पर समान रूप से लागू होने वाली एक व्यापक नीति लागू करने की जरूरत पर जोर दिया था। प्रधानमंत्री मोदी भी 2019 में स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से दिए भाषण में ‘आबादी के तेजी से बढ़ने’ की बात की थी और केंद्र और राज्यों से इसे रोकने के लिए योजनाएं बनाने का आह्वान किया था। अब जनसंख्या की चुनौतियों से निपटने के लिए हाई पावर्ड कमिटी बनाने का ऐलान बताता है कि मोदी सरकार ने कथित तौर पर एक खास तबके की बढ़ती आबादी से डेमोग्राफी में हो रहे बदलाव की चुनौती को गंभीरता से लिया है।

राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा? बॉर्डर वाले इलाकों में बदल रही डेमोग्राफी
2021 में पुलिस महानिदेशक (DGP) के वार्षिक सम्मेलन में, उत्तर प्रदेश और असम के पुलिस अधिकारियों ने नेपाल और बांग्लादेश के साथ अंतरराष्ट्रीय सीमा पर जिलों में जनसांख्यिकीय परिवर्तनों के बारे में चिंताओं को चिन्हित करते हुए एक शोध पत्र प्रस्तुत किया। अधिकारियों ने इन क्षेत्रों में मस्जिदों और मदरसों की संख्या में बढ़ोतरी और जनसंख्या में एक दशक में हुई उच्च वृद्धि की तरफ ध्यान खींचा था।

असम पुलिस के एक शोध पत्र में बताया गया है कि 2011 और 2021 के बीच बांग्लादेश सीमा से 10 किलोमीटर के दायरे में जनसंख्या वृद्धि 31.45% रही, जो पूरे देश और असम राज्य के अनुमानित औसत (12.5% और 13.54%) से काफी ज्यादा है।

नवंबर 2021 में, सीमा सुरक्षा बल (BSF) के तत्कालीन महानिदेशक पंकज कुमार सिंह ने कहा था कि असम और पश्चिम बंगाल के कुछ सीमावर्ती जिलों में जनसंख्या में बदलाव गृह मंत्रालय की उस अधिसूचना के पीछे का एक कारण हो सकता है, जिसमें एक महीने पहले BSF के अधिकार क्षेत्र को सीमा से 50 किलोमीटर तक बढ़ा दिया गया था। उन्होंने कहा था कि 2011 की जनगणना में जनसंख्या में बदलाव दिखाई देता है और “बंगाल और असम में जनसंख्या संतुलन बदल गया है, जिससे लोगों में असंतोष बढ़ा है… पड़ोसी सीमावर्ती जिलों में मतदान का रुझान बदल गया है… सरकार का सोच था कि यह अधिसूचना घुसपैठियों को पकड़ने में मदद कर सकती है।”

उत्तर प्रदेश पुलिस के एक शोध पत्र में बताया गया है कि महाराजगंज, सिद्धार्थनगर, बलरामपुर, बहराइच, श्रावस्ती, पीलीभीत और खीरी के सात सीमावर्ती जिलों के 1,047 गांवों में से 303 गांवों में मुस्लिम आबादी 30% से 50% के बीच है, जबकि 116 गांवों में मुस्लिम आबादी 50% से अधिक है।

जनसंख्या वृद्धि दर में गिरावट!
ध्यान देने वाली बात ये है कि जनगणना का काम अनिश्चितकाल के लिए टाल दिया गया है। बेशक आबादी के मामले में हम चीन को पीछे छोड़ चुके हैं लेकिन जनगणना के ताजा आंकड़ें नहीं होने से ‘तेजी से बढ़ती आबादी’ दावे पर पुख्ता तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। मौजूदा आंकड़े तो बताते हैं कि भारत में जन्म दर घट रही है। भारत में 2011 के बाद से जनगणना नहीं हुई है। साल 2020 के लिए ‘नमूना पंजीकरण प्रणाली’ (SRS) की रिपोर्ट बताती है कि महिलाओं के जीवनकाल में जन्म लेने वाले बच्चों की औसत संख्या, जो “कुल प्रजनन दर” (TFR) कहलाती है, असल में 2019 के 2.1 से घटकर 2 हो गई है।

गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले साल सितंबर में संसद में कहा था कि जनगणना और लोकसभा सीटों का पुनर्निर्धारण 2024 के आम चुनाव के बाद ही होगा, लेकिन उन्होंने कोई तारीख नहीं बताई। असल में जनगणना तो 2020 और 2021 में दो चरणों में होनी थी, लेकिन अनिश्चितकाल के लिए टाल दी गई है। जनगणना करने वाली संस्था रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया ने जिलों, तहसीलों और पुलिस थानों की सीमाओं को तय करने की समय सीमा को नौ बार बढ़ा दिया है।

ताजा आंकड़ों से ही तस्वीर हो सकेगी साफ
एक और महत्वपूर्ण रिपोर्ट ‘नागरिक पंजीकरण प्रणाली (CRS) पर आधारित भारत के महत्वपूर्ण आंकड़े’ जो 2020 के लिए थी, उसे ही अभी तक जारी किया गया है। 2021, 2022 और 2023 के आंकड़े जारी नहीं हुए हैं।

साबू मैथ्यू जॉर्ज नाम के सामाजिक कार्यकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर रिपोर्ट को समय पर प्रकाशित करने की मांग की है। उनका कहना है कि यह “सामाजिक-आर्थिक योजना में पारदर्शिता और प्रभावी जनसांख्यिकीय शोध और हस्तक्षेप के लिए आवश्यक” है। इस याचिका पर इस महीने सुनवाई हो सकती है।

याचिकाकर्ता ने कहा है कि 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों को ग्राम पंचायत स्तर तक के आंकड़े अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करने का निर्देश दिया था। याचिका में कहा गया है, ‘लिंग-चयनात्मक गर्भपात के मामले में, यह पारदर्शिता और जनसांख्यिकीय शोध ही था जिसने लिंग अनुपात में चिंताजनक गिरावट को उजागर किया।’

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